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Blog Entry# 1046533
Posted: Apr 05 2014 (00:08)

31 Responses
Last Response: Apr 09 2014 (02:10)
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5

Apr 05 2014 (00:08)   14163/Sangam Express | ETW/Etawah Junction (5 PFs)
 
Mridul^~
Mridul^~   46672 blog posts
Entry# 1046533            Tags   Past Edits
Sorry!!!!!!! I hve to posted in main forum about this news
तेजतर्रार अफसरों ने डेरा डाला
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014
इटावा। संगम एक्सप्रेस में डकैती की वारदात को अंजाम देने वालों की धरपकड़ के लिए जाल बिछाया जा रहा है। एसटीएफ के अलावा जीआरपी और सिविल पुलिस के उन तेजतर्रार अफसरों और जवानों को बुलाया गया है जिन्हें जिले की भौगोलिक स्थिति की
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अच्छीखासी जानकारी है। इसके अलावा पूर्व की डकैती की घटनाओं के खुलासे में उनका रोल रहा था।
संगम एक्सप्रेस में डकैती की गूंज देशभर में सुनाई देने के बाद पुलिस महकमा पूरी तरह से सक्रिय हो गया है। आलाधिकारी इटावा में डेरा जमाए हैं। इसके साथ ही जीआरपी की एसओजी टीम सहित आसपास के थानों का फोर्स लुटेरों की गिरफ्तारी के प्रयास में दिनरात लगा हुआ है। अनुभवी जवानों और अफसरों को लुटेरों के पीछे लगाया गया है। ये वो सुरक्षाकर्मी हैं जो इटावा सहित आसपास के क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति से अच्छी तरह परिचित हैं। जिले की क्राइम ब्रांच के साथ ही कोतवाली व इकदिल थाना पुलिस की संयुक्त टीम, भरथना पुलिस लुटेरों की तलाश में जुटी है। एडीजी वीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि लुटेरों की गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ को भी लगाया गया है।
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एसएसपी ने की व्यूह रचना
संगम एक्सप्रेस डकैती कांड के आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी हो इसके लिए एसपी जीआरपी आगरा वजीह अहमद इटावा में डेरा जमाए हुए हैं। गुरुवार को वह पूरे दिन जीआरपी थाना में रहे। जीआरपी थाना में एसएसपी इटावा दिनेश कुमार भी पहुंचे। दोनों ही अफसर ने जवानों को आवश्यक दिशा-निर्देश देकर बदमाशों की गिरफ्तारी के लिए व्यूह रचना की।
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फफूंद चौकी प्रभारी को जांच
एसपी जीआरपी वजीह अहमद ने संगम डकैती मामले की जांच फफूंद चौकी इंचार्ज राकेश कुमार त्यागी को सौंपी है। जांच मिलने के बाद त्यागी ने दावा किया है कि साथी अफसरों और आलाधिकारियों के सहयोग से पूरे मामले का जल्द से जल्द वर्कआउट कर दिया जाएगा। कुछ शातिर अपराधियों को चिह्नित किया गया है।
Source-- click here

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1 Public Posts - Sat Apr 05, 2014

2056 views
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Apr 05 2014 (01:01)
Mridul^~
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Re# 1046533-2              
कहां गया शौर्य, कैसी मिली ट्रेनिंग
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014
Etawah
Updated @ 5:30 AM IST
इटावा। संगम डकैती कांड ने राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) की क्षमता, कामकाज का तरीका और पूरी ट्रेनिंग पर सवाल
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खड़े कर दिए हैं। एक के बाद एक वारदातों ने यह सवाल उठाने को मजबूर किया है कि आखिर जीआरपी के जवानों में क्या कमी है, जो वे लुटेरों डकैतों से मोर्चा नहीं ले पाते। कानपुर से टुंडला के बीच हुई 10 डकैतियों में से एक में भी जीआरपी के जवानों ने न तो शौर्य का परिचय दिया और न ही ट्रेनिंग में मिली कुशलता को दर्शाया। क्यों आधुनिक हथियारों से लैस और लंबी चौड़ी फौज बदमाशों के सामने हथियार डाल देती है। यह सवाल हर उस व्यक्ति के जेहन में कौंध रहा है जो ट्रेनों में यात्रा करता है। पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद करता है और सुरक्षित जीवन जीना चाहता है। जीआरपी के जवानों को भी सेना के जवानों की तरह इसी बात का वेतन मिलता है कि जरूरत पड़ने पर जान देकर लोगों की जान बचानी है। आखिर इस शौर्य का परिचय देने में ये जवान पीछे क्यों हैं। इन सवालों के जवाब के लिए हमने जीआरपी और आरपीएफ के कैंपों थानों की खाक छानी। नतीजा जो निकला वे आपके सामने हैं।
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सालों से मॉक ड्रिल नहीं हुई
वारदात को रोकने के लिए या किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए रेलवे पुलिस की ओर से बीते कई सालों में मॉक ड्रिल (रिहर्सल) तक नहीं किया गया। ट्रेन लुटती है तो जीआरपी और आरपीएफ के जवान यह नहीं समझ पाते कि उन्हें कैसे मोर्चा बंदी लेनी है। किसी भी बीट में मॉक ड्रिल का उद्देश्य यह होता है कि जवानों को उस स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जाए, जो कभी भी उनके सामने खड़ी हो सकती है। अगर जवान ट्रेंड है तो उसका जोश और जज्बा कभी भी उसे टॉयलेट में छिपने नहीं देगा। वह आधुनिक हथियारों से लुटेरों पर भारी पड़ जाएगा।
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फिटनेश की है जबर्दस्त कमी
सीमा पर आतंकवादी से मुकाबला करने वाले जवानों की फिटनेश और क्षमता से तो आप परिचित ही होंगे। अब बात पुलिस फोर्स की करें तो अधिकारियाें से लेकर जवानाें में फिटनेश की कमी देखने को मिलती है। मेहनत और ट्रेनिंग में पीछे रहने के कारण इनकी क्षमता जंग खाती चली जा रही है। चंद कदम दौड़ना पड़े तो उनकी सांस फूल जाएगी। ऐसे में भाग रहे लुटेरों को कैसे पकड़ेंगे। इटावा में जीआरपी और आरपीएफ के जवानों की फिटनेश इसकी बानगी है।
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एक बार मिलती है ट्रेनिंग
जीआरपी के जवानों से बातचीत में पता चला कि उन्हें ट्रेनिंग सिर्फ जीआरपी में नौकरी पाने के वक्त दी जाती है। जब सिविल पुलिस का दरोगा या सिपाही जीआरपी फोर्स को ज्वाइन करता है तो उसे झांसी या अन्य किसी जगह सामान्य सी ट्रेनिंग दी जाती है। तीन साल तक जीआरपी फोर्स में रहने वाले दरोगा और सिपाही को ट्रेनिंग नहीं मिल पाती। यही कारण है हाथों में इनसास जैसी ऑटोमैटिक गन और जेब में 50 कारतूस होने के बाद भी तमंचा लहराने वालों के सामने जवान घुटने टेक देते हैं। कभी-कभार परेड आदि जीआरपी पुलिस लाइन में हो जाए तो अलग बात है।
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अगर होते ट्रेंड तो पड़ते भारी
संगम एक्सप्रेस में एस्कॉर्ट ड्यूटी में लगे सिपाही ट्रेंड होते तो डकैताें पर भारी पड़ते। उनका हौसला साथ देता और गोलियों की बौछार होती। शायद सही ट्रेनिंग न मिलने के कारण ही एस्कॉर्ट के सिपाही ऑटोमेटिक गन इनसास का इस्तेमाल ही नहीं कर पाए। एडीजी वीरेंद्र कुमार ने बताया कि इनसास गन के साथ सिपाहियों के पास 50-50 गोलियां थीं। यानी चाराें सिपाहियों के बीच कुल चार इनसास गन और 200 गोलियां थीं। दो सौ गोलियां किसी भी बड़ी वारदात से मोर्चे के लिए पर्याप्त हैं। लुटेरे खुले में थे और सिपाही ट्रेन के अंदर। सिपाहियों को छिपकर फायरिंग करने का पूरा मौका था। इनसास गन को ऑटोमेटिक मोड पर लगाकर सिपाही मिनट में वह कर सकते थे जो डकैतों ने सोचा भी नहीं होगा।

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21 Public Posts - Sat Apr 05, 2014

4 Public Posts - Sun Apr 06, 2014

4 Public Posts - Wed Apr 09, 2014
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