ऑडियो ने हादसे की कारणों का किसी हद तक पर्दाफाश कर दिया है। वायरल हुई ऑडियो में एक घटनास्थल के पास स्थित रेलवे फाटक का गेटमैन है तथा दूसरा उसका मित्र कर्मचारी है। वह आजकल किसी अन्य स्थान पर तैनात है। दोनों की बातचीत में यह स्पष्ट है कि पूरी घटना का कारण लाइन पर काम करने वाले वेल्डर, गैंगमैन व अन्य कर्मियों की लापरवाही तथा रेलवे अफसरों के प्रबंधन में की गई चूक है। दोनों कर्मियों के बीच हुई बातचीत के प्रमुख अंश....
मित्र : क्या हुआ तुम्हारे यहां?
गेटमैन : मेरे जैसा, मेरी ही नामराशि का जेई आया है, उसकी कोई मानता नहीं है। यहां कोई भी काम नहीं करना चाहता। आधा घंटा काम कराकर क्वार्टर पर चले गए। की-मैनी पर कोई नहीं जा रहा। गेट पर बैठकर वापस आ जाते हैं। ऐसी ही पेट्रोलिंग का हाल है। यह कोई पूछता नहीं है कौन कहां जा रहा है। पुराने आदमी लुहार हैं, जैसे वो कहते हैं, वैसे ही वह कर लेता है।
मित्र : आखिर क्या हुआ?
गेटमैन : लाइन पर वेल्डिंग का काम चल रहा था। ब्लॉक को मना कर दिया था। पुराने लोगों ने इसे पता नहीं क्या बताया। बस काम शुरू कर दिया। उस समय लाइन का टुकड़ा काटकर रखा था, तब तक जोड़ा नहीं था। गाड़ी का हो गया टाइम। जब ब्लॉक को मना कर रखा था तो गाड़ी तो आती ही। मैंने गेट बंद कर रखा था, उत्कल आ रही थी। बस फिर क्या होना था, वहां टुकड़ा नहीं था, ट्रेन पलट गई।
मित्र : लाइन का टुकड़ा अलग पड़ा था?
गेटमैन : जोड़ रखी थी, पर जोड़ी नहीं थी। वेल्डिंग नहीं की थी।
मित्र : समझ गया मैं।
गेटमैन : चार डिब्बे तो निकल गए, फिर लाइन टूट गई वहीं से। जोड़ा भी नहीं बांधा था तब तक। लाल झंडी भी नहीं लगाई थी, ब्लाक भी नहीं मिला।
गेटमैन : बीचोबीच वेल्डिंग मशीन थी, लाइन का टुकड़ा भी पड़ा था, बस चूरा कर दिया।
तीन दिन पहले भी मिली थी टूटी लाइन
दोनों कर्मियों की बातचीत में यह भी सामने आया है कि घटनास्थल के पास ही पुल के नीचे भी एक लाइन कई दिन से टूटी पड़ी थी। जिस पर दो दिन पहले ही अचानक नजर पड़ी। लाइन के कई स्लीपर भी टूटे मिले, जिससे साबित हो रहा था कि यह लंबे समय से टूटी थी, जिसे किसी ने नहीं देखा था। इसकी जांच भी रेलवे कर रहा है।
पटरी का टुकड़ा कटा पड़ा था
घटना के समय वेल्डर और मजदूर लाइन का टुकड़ा बदलने का काम कर रहे थे। पुराना टुकड़ा हटाकर नया लगाया जा रहा था। वेल्डिंग का काम करना था, लिहाजा वेल्डिंग मशीन पटरी के बीचोबीच रखी थी। पुराना कटा टुकड़ा भी लाइन के बीच में ही रखा था।
कॉशन दिया न ब्लॉक
जिस समय काम चल रहा था, उससे पहले व बाद में यानी दो घंटे की अवधि में इस लाइन से कई ट्रेन गुजरती हैं। इस दौरान न तो कोई ब्लॉक दिया गया और न ही ट्रैक बाधित होने की (कॉशन यानी सतर्कता) सूचना। इससे भी गंभीर बात यह है कि मौके पर काम कर रहे मजदूरों और कर्मचारियों ने अचानक ट्रेन आने की स्थिति से निपटने के लिए लाइन पर कोई लाल झंडी या पटाखा तक नहीं लगाया था।
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