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WAP-7 - तेरे जैसा यार कहाँ , कहाँ ऐसा याराना , याद करेगी दुनियां तेरा मेरा अफसाना. - Arjun Rai

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Blog Entry# 219962
Posted: Aug 14 2011 (13:59)

23 Responses
Last Response: Aug 14 2011 (19:01)
3691 views
0

Aug 14 2011 (13:59)  
 
ThE_bOsS^~
ThE_bOsS^~   17526 blog posts
Entry# 219962              
Did any body notice below the "INDIA RAIL INFO" stamp, the word "CHAK DE" with flag,
Nice feature by our Moderator Sir, only for today and tomorrow....!
I guess i didn't tell delay, as some body tell before me????
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21 Public Posts - Sun Aug 14, 2011

1306 views
0

Aug 14 2011 (15:09)
IM UR LOVER   82 blog posts
Re# 219962-22              
दिल्ली/ मुंबई/ जयपुर. सन 1947 से 2011। आजाद मुल्क के तौर पर 64 साल का सफर। इस दरम्यान कई स्तरों पर सामाजिक-आर्थिक बदलाव हुए। भास्कर ने अलग-अलग क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियों से ही इस बारे में बात की। जानकार मानते हैं कि ज्यादातर बड़े बदलाव 20 साल में हुए।
क्षेत्रीय मसलों की गूंज ताकत के साथ दिल्ली तक
मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी की मौजूदा झलक सबसे बड़ा बुनियादी बदलाव है। करीब 50 साल कांग्रेस केंद्र में रही। सत्तर के दशक में आपातकाल के दौरान उस पर तानाशाही के आरोप लगे। जनता ने न
...
more...
सिर्फ केंद्रीय सत्ता में दूसरे दलों को चुना, बल्कि राज्यों मंे क्षेत्रीय पार्टियों को भी जड़ें जमाने के मौके मिले। 1998 के बाद तो क्षेत्रीय ताकतों की बड़ी भूमिका ही केंद्र में बनने लगी। इन्हें सिर्फ राजनीतिक नजरिए से मत देखिए।
स्थानीय समाजों से जुड़े जरूरी क्षेत्रीय मुद्दों की गूंज दिल्ली में ताकत से सुनाई देने लगी। यह मामूली बात नहीं है। दूसरा बड़ा बदलाव अर्थव्यवस्था का है। 64 साल पहले तक गुलाम रहे मुल्क की अर्थव्यवस्था आज दुनिया में सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं में से है।
अछूते नहीं गांव-कस्बे भी
बड़े बदलाव पिछले बीस सालों ही नजर आए हैं। खासतौर से उदारीकरण के बाद। रोजगार के विकल्प बढ़े। उत्पादन बढ़ा। खेती में सुधार हुआ। इससे बदलाव शहरों से कस्बों-गांवों तक में दिखाई दिया। यह पहला चरण है। हमें सरकार और कापोरेट घरानों तक निर्भर नहीं होना चाहिए। एक बेरोजगार को काम देने का मतलब है एक परिवार को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने में हाथ बटाना। दूसरे चरण में, हर साधन संपन्न व्यक्तिइसमें हिस्सेदारी करे।
मजबूत सेकुलर समाज
आप 1947 का वक्त याद कीजिए। तब उद्योग नाम की चीज नहीं थी। गरीबी और अशिक्षा कितनी थी। साठ के दशक तक बहस होती रही कि आबादी बढ़ेगी तो आने वाले दशकों में क्या होगा? लेकिन औद्योगिकीकरण ने हालात पर काबू पाया। मेरी नजर में व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता और मजबूत सेकुलर समाज ऐसे बदलाव हैं, जिनका मैं सबसे पहले जिक्र करना चाहूंगा।
महिलाएं बड़े फैसले ले रही हैं
सबसे बड़ा बदलाव है महिलाओं का सशक्तिकरण। शिक्षा व रोजगार में उनकी बढ़ती भागीदारी के साथ सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक सक्रियता काबिलेगौर है। पंचायत से लेकर राज्यों व केंद्र तक सत्ता में उनकी सशक्त उपस्थिति बढ़ी है। स्वयं सहायता समूहों में वे बड़े फैसले ले रही हैं। समाज में यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण करवट है। सूचना-तकनीक ने जो बदला वह स्वाभाविक है।
आम आदमी की ताकत बढ़ी
पिछले कुछ सालों में मोबाइल और इंटरनेट के जरिए आम आदमी की ताकत बढ़ी है। तकनीक सिर्फ संपन्न वर्ग के कब्जे में नहीं है। सूचना का तो जैसे विस्फोट हुआ है। मीडिया की निगहबानी बढ़ी है। अदालतों के गलत फैसले बदले गए। जैसे-जेसिका लाल प्रकरण। पहले कानून बनने के बाद लोग प्रतिक्रिया देते थे। अब कानून बनाने की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी है। सूचना और शिक्षा के कानूनी हक जनता की पहल से उपजे। लोकपाल के लिए लड़ाई जारी है। महिलाएं निर्णायक भूमिका में आ रही हैं।
पांच बड़े बाजारों में भारत भी
सबसे बड़ा बदलाव आर्थिक क्षेत्र में आया। भारतीय मध्य वर्ग ने भारत को दुनिया के पांच सबसे बड़े बाजारों में शुमार कर दिया है। कारों के उत्पादन में तो हमारा देश ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों से आगे है। सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में भारत सुपर पावर है। भारतीय प्रोफेशनल्स की ताकत पूरी दुनिया ने मानी है। खेल में अब बॉक्सिंग, कुश्ती, निशानेबाजी, टेनिस, बैडमिंटन, शतरंज में भारतीय खिलाड़ी दुनिया भर में लगातार देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
बुनियादी सुविधाएं गांवों तक
सामाजिक-आर्थिक बदलाव के दो दौर हैं। पहला आर्थिक उदारीकरण से पहले, दूसरा बाद का। उदारीकरण के बाद अभूतपूर्व विकास हुआ। पिछले दशक में बुनियादी सुविधाओं की तस्वीर काफी बदली। सड़कें गांव-गांव तक गईं। स्वर्ण चतुभरुज प्रोजेक्ट के तहत 5, 846 किलोमीटर सड़कों से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जुड़ रहे हैं। दिल्ली के बाद हैदराबाद, बेंगलुरू, जयपुर, भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में मेट्रो ट्रेन की तैयारी हो रही है। मुंबई में मोनो रेल परियोजना पर काम चल रहा है।
लौटेगा सिस्टम: जितना सोना ..
इससे उसका रिजर्व स्टॉक 560 टन हो गया है। इस दौरान चीन ने भी 400 टन सोना खरीद कर अपना रिजर्व स्टॉक 1050 टन कर लिया है।
गोल्ड स्टैंडर्ड से फायदा क्या?
पहला तो सोने के भाव से ही तय होते हैं देशों की करंसी के एक्सचेंज रेट। यानी जितना सोना एक डॉलर में खरीदा जाता है, उतना सोना कितने रुपए में आएगा?
दूसरा जितने नोट छपेंगे, उतनी महंगाई बढ़ती जाएगी। कारण साफ है ज्यादा पैसा होने से ज्यादा चीजें खरीदी जाएंगी। जब सोने से करंसी पर कंट्रोल होगा तो ज्यादा नोट नहीं छाप सकते यानी महंगाई पर काबू।

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1 Public Posts - Sun Aug 14, 2011
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