लोको पायलट तुम्हारा भी क्या जीवन,
कस्टो से भरपूरl
जनजीवन के बहुत निकट हो,
पर अपनों से दूर l
शाम कहाँ होती है तेरी,
होती...
more... कहाँ सवेरा l
योगी से रमते रहते हो,
निश्चित नहीं बसेरा l
जीवन में क्या सुख पाया है
पगले तू ही बोलl
अब न रहा जाता चुप रहना
ह्रदय ग्रंथि तो खोल l
कभी जेठ की लू तपती है,
कभी बरसात की पानी l
शीतलहर से कभी गुजरते,
कभी फिजाँ तूफानी l
फिर भी सीमा के प्रहरी सा,
तुमने बढना सिखा l
जलने वाले तुम्ही बताओ,
इनसा कौन सरीखा?
बीबी रुग्न पड़ी सैया पर
बच्चे रहे बिलखते l
पर तुम चल देते ड्यूटी पर,
अपलक उन्हें निरखते l
घर में आया तार,
माँ पड़ी,बिस्तर मरणासन्न l
फिर भी भटक रहे गाड़ी में,
जैसे कोई विपन्न l
कौन तुम्हे देता है छुट्टी,
पोजीशन है टाइट?
कहाँ गया फिर संविधान,
और फंडामेंटल राईट?
फिर भी मलिन न होवे मुखड़ा,
यूं ही बढ़ते जाओ l
लौह मार्ग के तुम राही हो,
लौह पुरुष कहलाओ l
वेतन भत्ता बढ़ता सबका,
तेरी किस्मत खोटी l
तुमको है अभ्यास दुःखों का,
फिर क्या होगी रोटी l
लोको पायलट तुम्हें भूखे रहना है,
बच्चों को रोने दो l
तुम हो रक्षक,
जगते जाओ,
यात्री को सोने दो l
बदल गये हर कोच रेल के,
लेकिन तेरा इंजन न बदला l
सारी दुनियां बदल गयी,
पर कहते हैं,
भगवान न बदला l
संरक्षा के हर नियमों ने,
कस कर तुमको बांधा l
जहाँ दंड की बारी आयी,
सबसे पहले माथा l
फिर भी लोको पायलट साथियों रहना,
निज मस्ती में चूर l
लोको पायलट तुम्हारा भी क्या जीवन,
कष्टों से भरपूर l
सभी लोको पायलट भाइयो को समर्पित।
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