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Blog Entry# 1571439
Posted: Aug 22 2015 (18:13)
3 Responses
Last Response: Aug 22 2015 (18:18)
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बिहार की बॉर्डर में प्रवेश के साथ ही ट्रेनें बैलगाड़ी की तरह हो जाती हैं। दिल्ली से आने वाली ज्यादातर ट्रेनें गोरखपुर तक तो सही टाइम पर पहुंचती हैं, लेकिन उत्तर बिहार की सीमा में प्रवेश करते ही अपने डेस्टिनेशन तक कब पहुंचेगी यह रेलवे भी नहीं बता पाता है। हालांकि, यह सब खुद रेलवे ने ही तय किया हुआ है।
यहां तक कि सप्तक्रांति एक्सप्रेस मुजफ्फरपुर से मोतीपुर की 26 किमी की दूरी जाते हुए 20 मिनट में तय करती है और लौटने में इसे 57 मिनट लग जाते हैं। रेलवे के चीफ कंट्रोलर और स्टेशनों पर बैठे स्टेशन मास्टर की मनमानी से भी यहां ट्रेनें रुकी रहती हैं और जब चलती हैं तो मानिए रेंग रही हों।
रेलवे...
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यहां तक कि सप्तक्रांति एक्सप्रेस मुजफ्फरपुर से मोतीपुर की 26 किमी की दूरी जाते हुए 20 मिनट में तय करती है और लौटने में इसे 57 मिनट लग जाते हैं। रेलवे के चीफ कंट्रोलर और स्टेशनों पर बैठे स्टेशन मास्टर की मनमानी से भी यहां ट्रेनें रुकी रहती हैं और जब चलती हैं तो मानिए रेंग रही हों।
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110 की स्पीड हो जाती है 19 KM प्रति घंटा
उत्तर बिहार में रेलवे लाइन की स्थिति इतनी खराब है कि महज 113 किमी की दूरी तय करने में ट्रेनों को 17 स्थानों पर सावधानी बरतनी होती है। 110 किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनें छपरा से मुजफ्फरपुर के बीच 17 स्थानों पर औसतन 19 किलोमीटर की गति से ही चल पाती हैं। नरकटियागंज से मुजफ्फरपुर आने में भी 11 स्थानों पर ट्रेनें धीमी चलती हैं। कटिहार से मुजफ्फरपुर आने में 22 स्थानों पर ट्रेनों की गति न्यूनतम हो जाती हैं।
उत्तर बिहार में रेलवे लाइन की स्थिति इतनी खराब है कि महज 113 किमी की दूरी तय करने में ट्रेनों को 17 स्थानों पर सावधानी बरतनी होती है। 110 किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनें छपरा से मुजफ्फरपुर के बीच 17 स्थानों पर औसतन 19 किलोमीटर की गति से ही चल पाती हैं। नरकटियागंज से मुजफ्फरपुर आने में भी 11 स्थानों पर ट्रेनें धीमी चलती हैं। कटिहार से मुजफ्फरपुर आने में 22 स्थानों पर ट्रेनों की गति न्यूनतम हो जाती हैं।