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Blog Entry# 4911692
Posted: Mar 18 2021 (19:05)
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बाते, रेल अर्थसंकल्प पर बहस की!
18th Mar 2021
Rail Duniya
जमाना ऐसा चल रहा है, हर किसी को बोलने, अपनी बात रखने का हक़ है, “राइट टु स्पीक,” अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य जो है। बात कहने का हक़ है, मगर मनवाने का? भाई, ऐसा कोई हक़ नही होता। 😄
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18th Mar 2021
Rail Duniya
जमाना ऐसा चल रहा है, हर किसी को बोलने, अपनी बात रखने का हक़ है, “राइट टु स्पीक,” अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य जो है। बात कहने का हक़ है, मगर मनवाने का? भाई, ऐसा कोई हक़ नही होता। 😄
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फिर उसके लिए एक अलग नीति अपनाई जाती है, जिसे हमारे देश मे चाणक्य नीति कहा जाता है। साम, दाम, दण्ड और भेद यह वे चार सूत्र है जो चाणक्य नीति के तहत आते है, लेकिन आजकल सभी को यह सूत्र समझ आ गए है, अतः इससे भी काम सफल कराने में दिक्कतें आती है तब एक और अस्त्र बाहर निकलता है, वह है भावना, सहानुभूति बटोरने वाला अस्त्र। यह ऐसा अस्त्र है, इससे काम बनें या ना बनें लेकिन यह बात तो सिद्ध हो जाती है, की काम कराने के लिए घुटने तक टेक दिए गए है।
चर्चा का विषय यह है, रेल अर्थसंकल्प पर देशभर के विविध जनप्रतिनिधियों द्वारा रेल मन्त्री के सन्मुख, अपने क्षेत्र की बात रखी जा रही है। ऐसा है, किसी घर मे चार बेटे है, जो कुछ करना है वह “घर” के लिए करना है, मगर हर एक बेटा यह समझता है, उसे कुछ नही मिला, जो कुछ किया जा रहा है उसका फायदा उसके दूसरे भाई को ही मिलेगा। अब, वह ये क्यों नही समझता, जो कुछ हो रहा है वह “घर” को सुदृढ बनाने के लिए किया जा रहा है न की किसी एक को फायदा पहुँचाने। हमारा देश, हमारा घर है और हम वह चार बेटे है, जो दूसरे बेटे की थाली में घी ज्यादा परोसा जा रहा है इस पर ही नजरें गड़ाए रहते है।
जब बात प्रतिनिधित्व निभाने की है, तो यह साबित करना भी जरूरी है, की जनता की मांग सामने तक पोहोंचायी गयी है या नही? अतः माँगे तो रखी जाती ही है। चाहे वह पूरी कीये जाने के लिए योग्य हो या ना हो। फिर ऐसी विशिष्ट माँगोंके लिए सर्वेक्षण किया जाता है। जिसमे प्रोजेक्ट निर्माण की लागत और पूरा होने के बाद उससे मिलनेवाली कमाई इसका तालमेल लगाया जाता है। इस आधारपर प्रोजेक्ट का भविष्य तय होता है। कई बार जनप्रतिनिधियों के समाधान के लिए ही सर्वेक्षण करा जाता है, जिसके बारे में पहले ही पता होता है कि प्रोजेक्ट फिजिबल नही है।
एक बात विशेष तौर पर समझने की है, जब कहा जाता है, सड़क निर्माण की घोषणा, रेल मार्ग के मुकाबले फटाफट हो जाती है। उसके लिए धनार्जन भी हो जाता है, कार्य भी जल्द शुरू हो जाते है। साहब, यही तो मुख्य अन्तर है, सड़क और रेल मार्ग के बीच। सड़क मार्ग में कई उद्योग, व्यापार, जमीनदार, रसूखदार के हीत जुड़े होते है। किसी को फैक्ट्री के पास से सड़क गुजरने का फायदा मिलता है, किसी को खेती का मूल्यांकन बढ़कर मिलता है। दूसरा सड़क मार्ग ऐसा है, आपके पास ट्रक है, कार है, ट्रैक्टर है या बैलगाड़ी आप उस सड़क का उपयोग कभी भी, कहीं भी, कैसे भी कर सकते है, इसके लिए आपको न ही किसी विशेष वाहन या ही किसी विशेष अनुमति की जरूरत है। लेकिन रेल मार्ग का ऐसा नही है। रेल मार्ग पर चलने के लिए रेल गाड़ी ही चाहिए। याने रेल मार्ग बनाने के लिए खर्च, फिर उसपर चलाने के लिए विशिष्ट संरचनाओं से युक्त वाहन, उसकी देखभाल के लिए तन्त्रज्ञ, याने एक पूरी की पूरी यंत्रणा इसके लिए कायम स्वरूप में लगनी ही है। निर्माण, संचालन और देखभाल हरदम हर वक्त करना ही है। ऐसा नही की कच्ची पक्की कैसी भी सड़क है, वाहन तो चल ही जाएगा। याने रेल मार्ग के लिए फंडिंग करना, सड़क मार्ग की फंडिंग से कहीं मुश्किल है। दूसरा फर्क घाट, पहाड़ी, नदी, दर्रे इसका भी है, सड़क मार्ग के लिए शार्प टर्न, खड़ी चढ़ाई को एडजस्ट करना मुमकिन है, यह रेल मार्ग को आसानी से सम्भव नही है। रेल मार्ग के निर्माण का खर्च बढ़ता चला जाता है।
दूसरा, लम्बी लम्बी अन्तरोंकी गाड़ियोंकी माँग की जाती है, आम जनता को हर दिन पास के शहरों में जाने के लिए ज्यादा कनेक्टिविटी की जरूरतें है, न की दूर दूर के तीर्थक्षेत्रोंको जानेकी। वहीं बात इन्ही लम्बी दूरीक़े गाड़ियोंके स्टापेजेस के माँग की। भाई, वह रेल गाड़ी है, न की गांवों में चलने वाली कोई रोड़वेज बस, के हाथ दिखाया और रुक गयी, या अपना घर यहांसे पास पड़ता है, हम यही उतरेंगे। रेल गाड़ियोंके स्टापेजेस में रेलवे उसका खर्चा गिनती है और नही रोके जाने से फायदा। जब कमाई और खर्च का तालमेल दिखाई नही देता तब ही स्टापेजेस हटाए जाते है। रेल विभाग का स्टापेजेस कम करने में कोई निजी हित है ऐसा क़दापी नही सोचना चाहिए, ऐसी हर बात पर, तकनीकी आधार ले कर ही ऐसे निर्णय लिए जाते है।
खैर, बहुत सारी तकनीकी बातें है। अब आप बताए कश्मीर में दुनिया का सबसे ऊंचा पुल रेल मार्ग के लिए बनाया जा रहा है, रामेश्वरम में समुंदर के बीच अत्याधुनिक रेल पुलिया बनने जा रहा है, दिल्ली, कोलकाता की मैट्रो, रोहतक का हवाई रेल मार्ग, देश भर में वर्ष 2023 तक पूर्णतयः विद्युतीकरण, करोड़ो रूपये लगाकर बनाए जा रहे रेलवे के समर्पित मालवहन गलियारे, पटरियोंपर 130-160 किलोमीटर प्रति घण्टे से दौड़ लगाने वाली हमारे भारतीय रेल की अत्याधुनिक रेल गाड़ियाँ क्या यह हमारे लिए गौरव की बात नही? बेशक! यह सब हमारे लिए ही है, हम भारतियोंके लिए है।
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