Spotting
 Timeline
 Travel Tip
 Trip
 Race
 Social
 Greeting
 Poll
 Img
 PNR
 Pic
 Blog
 News
 Conf TL
 RF Club
 Convention
 Monitor
 Topic
 #
 Rating
 Correct
 Wrong
 Stamp
 PNR Ref
 PNR Req
 Blank PNRs
 HJ
 Vote
 Pred
 @
 FM Alert
 FM Approval
 Pvt

RailCal app

site support

Bandra Garib-Rath - नाम से गरीब, लेकिन मेरे दिल के करीब - Abdul Rehman

Search Forum
<<prev entry    next entry>>
Blog Entry# 999367
Posted: Feb 18 2014 (11:58)

2 Responses
Last Response: Feb 18 2014 (14:30)
Social
4164 views
8

Feb 18 2014 (11:58)   13345/Varanasi - Singrauli Intercity MEMU Express (UnReserved) | CAR/Chunar Junction (5 PFs)
 
rhythmsofrail^~
rhythmsofrail^~   8539 blog posts
Entry# 999367            Tags   Past Edits
मानसिक हलचल..
भोंदू अकेला नहीं था। एक समूह था – तीन
आदमी और तीन औरतें। चुनार स्टेशन पर
सिंगरौली जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
औरतें जमीन पर गठ्ठर लिए बैठी थीं।
...
more...
एक
आदमी बांस की पतली डंडी लिए बेंच पर बैठा था।
डंडी के ऊपर एक छोटी गुल्ली जैसी डंडी बाँध
रखी थी। यानी वह एक लग्गी थी।
आदमी ने अपना नाम बताया – रामलोचन। उसके पास
दूसरा खड़ा था। वह था भोंदू। भोंदू, नाम के अनुरूप
नहीं था। वाचाल था। अधिकतर प्रश्नों के उत्तर
उसी ने दिए।
वे लोग सिंगरौली जा रहे थे। वहां जंगल में पत्ते
इकठ्ठे कर वापस आयेंगे। पत्ते यहाँ बेचने का काम
करते हैं।
कितना मिल जाता है?
रामलोचन ने चुनौटी खुरचते हुए हेहे करते बताया –
करीब सौ रूपया प्रति व्यक्ति। हमें लगा कि लगभग
यही लेबर रेट तो गाँव में होगा। पर रामलोचन
की घुमावदार बातों से यह स्पष्ट हुआ कि लोकल
काम में पेमेंट आसानी से नहीं मिलता। देने वाले बहुत
आज कल कराते हैं।
भोंदू ने अपने काम के खतरे बताने चालू किये। वह
हमारे पास आ कर जमीन पर बैठ गया और बोला कि
वहां जंगल में बहुत शेर, भालू हैं। उनके डर के
बावजूद हम वहां जा कर पत्ते लाते हैं।
अच्छा, शेर देखे वहां? काफी नुकीले सवाल पर उसने
बैकट्रेक किया – भालू तो आये दिन नजर आते हैं।
इतने में उस समूह का तीसरा आदमी सामने आया।
वह सबसे ज्यादा सजाधजा था। उसके पास
दो लग्गियाँ थीं। नाम बताया- दसमी। दसमी ने
ज्यादा बातचीत नहीं की। वह संभवत कौतूहल वश
आगे आया था और अपनी फोटो खिंचाना चाहता था।
सिंगरौली की गाड़ी आ गयी थी। औरते अपने गठ्ठर
उठाने लगीं। वे और आदमी जल्दी से ट्रेन की और
बढ़ने लगे। भोंदू फिर भी पास बैठा रहा। उसे मालूम
था कि गाड़ी खड़ी रहेगी कुछ देर।
टिकट लेते हो?
भोंदू ने स्पष्ट किया कि नहीं। टीटीई ने आज तक तंग
नहीं किया। पुलीस वाले कभी कभी उगाही कर लेते हैं।
कितना लेते हैं? उसने बताया – यही कोइ दस बीस
रूपए।
मेरा ब्लॉग रेलवे वाले नहीं पढ़ते। वाणिज्य विभाग
वाले तो कतई नहीं। पुलीस वाले भी नहीं पढ़ते
होंगे। अच्छा है।
रेलवे कितनी समाज सेवा करती है। उसके इस
योगदान को आंकड़ो में बताया जा सकता है?
या क्या भोंदू और उसके गोल के लोग उसे
रिकोग्नाइज करते हैं? नहीं। मेरे ख्याल से
कदापि नहीं।
Writer - ज्ञानदत पाण्डेय , उत्तर-मध्य रेलवे, इलाहाबाद
के मालगाड़ी परिचालन का काम भी देखता हूं।
Story link : click here

Translate to English
Translate to Hindi

3229 views
1

Feb 18 2014 (14:06)
Yantravinyas
Yantravinyas   20339 blog posts
Re# 999367-1              
strar
Translate to English
Translate to Hindi

3240 views
1

Feb 18 2014 (14:30)
FRANKESTEIN~   459 blog posts
Re# 999367-2              
gr8 blog..!!
Translate to English
Translate to Hindi
Scroll to Top
Scroll to Bottom
Go to Desktop site
Important Note: This website NEVER solicits for Money or Donations. Please beware of anyone requesting/demanding money on behalf of IRI. Thanks.
Disclaimer: This website has NO affiliation with the Government-run site of Indian Railways. This site does NOT claim 100% accuracy of fast-changing Rail Information. YOU are responsible for independently confirming the validity of information through other sources.
India Rail Info Privacy Policy