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लेकसिटी में एशिया के सबसे बड़े रेलवे
प्रशिक्षण संस्थान में चार बेटियां लोको पायलट
की ट्रेनिंग ले रही हैं। वे यहां कई बाधाएं पार कर आईं
हैं। सबसे बड़ी बाधा...
more... समाज के उलाहने की। इसमें ऐसी
बेटियां भी हैं जिनके मां-बाप ने कभी ट्रेन के इंजन में
झांक कर नहीं देखा। कोटा की सुनीता को
रिश्तेदारों ने तो कह डाला कि पागल हो गई क्या।
कभी किसी लड़की को ट्रेन चलाते देखा है। बेटियां
कहती हैं कि काम चुनौती भरा है, लेकिन जब
लड़कियां प्लेन उड़ा सकती हैं तो वे ट्रेन भी चला
सकती हैं। उदयपुर में प्रशिक्षण लेकर ये देश भर के
विभिन्न हिस्सों में ट्रेन दौड़ा रही हैं। एक ट्रेन में
करीब 2000 यात्री होते हैं। ट्रेनें प्रति घंटे 100
किमी से भी ज्यादा स्पीड से दौड़ती हैं।
पिता ट्रेन के पीछे गार्ड हैं, बेटी अब आगे ड्राइवर
झांसी की पूजा कुमारी कहती हैं कि उनके पिता
देवी राम प्रजापति रेलवे में गार्ड हैं। पिता के जॉब
को देख ट्रेन पायलट बनने की ठानी। उस ट्रेन को
चलाने की ख्वाहिश है जिसे हरी झंडी दिखाकर मेरे
पिता रवानगी की इजाजत दें। माता कलावती
गृहिणी हैं।
3 बनीं लोको पायलट
उदयपुर में ट्रेनिंग लेकर अजमेर निवासी वर्षा
उरासिया 2014 में लोको पायलट बनीं। उन्हें आबू
रोड में नियुक्ति दी गई। झारखंड के दांतेवाड़ा
निवासी सपना दास व दीपा राय भी पिछले साल
उदयपुर से लोको पायलट बन कर गईं।