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नहीं कोई गम, रेलवे से हैं हम - Aman

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Blog Entry# 1115997
Posted: May 29 2014 (17:51)

2 Responses
Last Response: May 29 2014 (18:21)
General Travel
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3

May 29 2014 (17:51)   BWN/Barddhaman Junction (8 PFs)
 
Vishwanath
Vishwanath   20299 blog posts
Entry# 1115997            Tags   Past Edits
From: तीसरे दर्जे की विडंबना > मोहनदास करमचंद गांधी [सत्य के प्रयोग]
बर्दवान पहुँचकर हमें तीसरे दर्जे का टिकट लेना था। उसे लेने में परेशानी हुई। जवाब मिला, 'तीसरे दर्जे के यात्री को टिकट पहले से नहीं दिया जाता।' मैं स्टेशन मास्टर से मिलने गया। उनके पास मुझे कौन जाने देता? किसी ने दया करके स्टेशन मास्टर को दिखा दिया। मैं वहाँ पहुँचा। उनसे भी उपर्युक्त उत्तर मिला। खिड़की खुलने पर टिकट लेने गया। पर टिकट आसानी से मिलनेवाला न था। बलवान यात्री एक के बाद एक घुसते जाते और मुझ जैसों को पीछे हटाते जाते। आखिर टिकट मिला।
गाड़ी
...
more...
आई। उसमें भी जो बलवान थे वे घुस गए। बैठे हुओं और चढ़ने वालों के बीच गाली गलौज और धक्का मुक्की शुरू हुई। इसमें हिस्सा लेना मेरे लिए संभव न था। हम तीनों इधर से उधर चक्कर काटते रहे। सब ओर से एक ही जवाब मिलता था, 'यहाँ जगह नहीं है।' मैं गार्ड के पास गया। उसने कहा, 'जगह मिले तो बैठो, नहीं तो दूसरी ट्रेन में जाना।'
मैंने नम्रता-पूर्वक कहा, 'लेकिन मुझे जरूरी काम है।' यह सुनने के लिए गार्ड के पास समय नहीं था। मैं हारा। मगनलाल से कहा, 'जहाँ जगह मिले, बैठ जाओ।' पत्नी को लेकर मैं तीसरे दर्जे के टिकट से ड्योढ़े दर्जे में घुसा। गार्ड ने मुझे उसमें जाते देख लिया था। आसनसोल स्टेशन पर गार्ड ज्यादा किराए के पैसे लेने आया। मैंने कहा, 'मुझे जगह बताना आपका धर्म था। जगह न मिलने के कारण मैं इसमें बैठा हूँ। आप मुझे तीसरे दर्जे में जगह दिलाइए। मैं उसमें जाने को तैयार हूँ।'
गार्ड साहब बोले, 'मुझसे बहस मत कीजिए। मेरे पास जगह नहीं है। पैसे न देने हों, तो गाड़ी से उतरना पड़ेगा।' मुझे तो किसी भी तरह पूना पहुँचना था। गार्ड से लड़ने की मेरी हिम्मत न थी। मैंने पैसे चुका दिए। उसने ठेठ पूना तक का ड्योढ़ा भाड़ा लिया। यह अन्याय मुझे अखर गया।
सवेरे मुगलसराय स्टेशन आया। मगनलाल ने तीसरे दर्जे में जगह कर ली थी। मुगलसराय में मैं तीसरे दर्जे में गया। टिकट कलेक्टर को मैंने वस्तुस्थिति की जानकारी दी और उससे इस बात का प्रमाण पत्र माँगा कि मैं तीसरे दर्ज में चला आया हूँ। उसने देने से इनकार किया। मैंने अधिक किराया वापस प्राप्त करने के लिए रेलवे के उच्च अधिकारी को पत्र लिखा। उनकी ओर से इस आशय का उत्तर मिला, 'प्रमाणपत्र के बिना अतिरिक्त किराया लौटाने का हमारे यहाँ रिवाज नहीं है। पर आपके मामले में हम लौटाए दे रहे है। बर्दवान से मुगलसराय तक का ड्योढ़ा किराया वापस नहीं किया जा सकता।'
इसके बाद के तीसरे दर्जे की यात्रा के मेरे अनुभव तो इतने हैं कि उनकी एक पुस्तक बन जाए। पर उनमें से कुछ की प्रासंगिक चर्चा करने के सिवा इन प्रकरणों में उनका समावेश नहीं हो सकता। शारीरिक असमर्थता के कारण तीसरे दर्जे की मेरी यात्रा बंद हो गई। यह बात मुझे सदा खटकी है और आगे भी खटकती रहेगी। तीसरे दर्जे की यात्रा में अधिकारियों की मनमानी से उत्पन्न होनेवाली विडंबना तो रहती ही है। पर तीसरे दर्जे में बैठनेवाले कई यात्रियों का उजड्डपन, उनकी स्वार्थबुद्धि और उनका अज्ञान भी कुछ कम नहीं होता। दुख तो यह है कि अकसर यात्री यह जानते ही नहीं कि वे अशिष्टता कर रहे हैं, अथवा गंदगी फैला रहे हैं अथवा अपना ही मतलब खोज रहे हैं। वे जो करते हैं, वह उन्हें स्वाभाविक मालूम होता है। हम सभ्य और पढ़े लिखे लोगों ने उनकी कभी चिंता ही नहीं की।
थके माँदे हम कल्याण जंक्शन पहुँचे। नहाने की तैयारी की। मगनलाल और मैंने स्टेशन के नल से पानी लेकर स्नान किया। पत्नी के लिए कुछ तजवीज कर रहा था कि इतने में भारत समाज के भाई कौल ने हमें पहचान लिया। वे भी पूना जा रहे थे। उन्होंने पत्नी को दूसरे दर्जे के स्नानग्रह में स्नान कराने के लिए ले जाने की बात कही। इस सौजन्य को स्वीकार करने में मुझे संकोच हुआ। पत्नी को दूसरे दर्जे के स्नानघर का उपयोग करने का अधिकार नहीं था, इसे मैं जानता था। पर मैंने उसे इस स्नानघर में नहाने देने के अनौचित्य के प्रति आँखें मूँद ली। सत्य के पुजारी को यह भी शोभा नहीं देता। पत्नी का वहाँ जाने का कोई आग्रह नहीं था, पर पति के मोहरूपी सुवर्णपात्र ने सत्य को ढाँक लिया।
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May 29 2014 (18:17)
MailguardSG25~
MailguardSG25~   24054 blog posts
Re# 1115997-1              
is MK Gandhi on board 12321 HWH CSTM Mail?
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May 29 2014 (18:21)
MailguardSG25~
MailguardSG25~   24054 blog posts
Re# 1115997-2              
BWN->KYN->PUNE onward journey used by MK Gandhi first train is 12321 Imperial Mail next train is not mentioned
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