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Blog Entry# 1147065
Posted: Jun 26 2014 (11:33)
7 Responses
Last Response: Jun 26 2014 (16:48)
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Ravish Kumar's (NDTV India) blog on Facebook:
रेल बजट के दिनों में लैनलों के लिलपोर्टर ऐसे रेल में घुसते हैं जैसे सीधा चाँद से गड्ढे में गिर गए हों । हम जैसे सामाजिक जीवन में रहते हैं वैसे ही तो रेल में रहते हैं । जिस नालायक रोंदू क्लास को फ्लश चलाने और बेसिन के इस्तमाल की तमीज़ नहीं उसे सफ़ाई को लेकर रोता देख रोना आता है । फ़्लश करने के तरीके लिखने के बाद भी इस्तमाल करना नहीं आता । मग तक को बाँध कर रखना पड़ता है । गंदा कौन करता है रेल को ।कौन कुर्सियाँ और हैंड रेस्ट तोड़ देता है । चार्जर में प्लग ऐसे ठूँसता है जैसे खुंदक निकाल रहा हो । सुरक्षा के नाम...
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रेल बजट के दिनों में लैनलों के लिलपोर्टर ऐसे रेल में घुसते हैं जैसे सीधा चाँद से गड्ढे में गिर गए हों । हम जैसे सामाजिक जीवन में रहते हैं वैसे ही तो रेल में रहते हैं । जिस नालायक रोंदू क्लास को फ्लश चलाने और बेसिन के इस्तमाल की तमीज़ नहीं उसे सफ़ाई को लेकर रोता देख रोना आता है । फ़्लश करने के तरीके लिखने के बाद भी इस्तमाल करना नहीं आता । मग तक को बाँध कर रखना पड़ता है । गंदा कौन करता है रेल को ।कौन कुर्सियाँ और हैंड रेस्ट तोड़ देता है । चार्जर में प्लग ऐसे ठूँसता है जैसे खुंदक निकाल रहा हो । सुरक्षा के नाम...
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4 Public Posts - Thu Jun 26, 2014
मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ | रेल में औसत आदमी साल में ज्यादा से चार बार यात्रा करता है और बस में औसतन बीस बार फिर भी रेल के बढ़ते किराए से ही उसे परेशानी होती है ऐसा क्यों जबकि बस के किराये रेल से दोगुने हैं | फिर आराम भी ट्रेन में ही मिलता है | जब चाहो सो जाओ जब चाहो टॉयलेट जाओ | हाँ यह जरूर है कि रेल में सफाई इसलिए कम दिखती है क्योंकि लोग ही उसे गन्दा करते हैं | जरूरत है लोगों को जागरूक करने की | उन्हें यह समझाने की कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ रेल की नहीं , हमारी भी है | खिड़की से हाथ बाहर करके कचरे को बाहर भी फेंका जा सकता है | यदि यात्री जाग्रत हों तो सब ठीक हो जाएगा |
2 Public Posts - Thu Jun 26, 2014