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Blog Entry# 5915989
Posted: Dec 19 2023 (13:43)
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Last Response: Dec 27 2023 (23:20)
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Dec 19 2023 (13:43) AH/Achhnera Junction (3 PFs)
PrakharYadav^~
PrakharYadav^~ 12955 blog postsEntry# 5915989 Tags Past Edits
Dec 19 2023 (14:04)
मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी बहुत खुश थे और वो मेरी दोस्त को संचालित करने वाले चालक दल के सदस्यों को सम्मानित करने वाले थे। मैं खुश होने के साथ साथ आशंकित भी था कि क्या मेरे पुराने दोस्त को नए नीति नियामकों द्वारा मेरे ऊपर ठहराव दिया गया है या नहीं। इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुईं व उक्त दिन शाम के लगभग 4 बजे मुसाफिरों का शोर शुरू हुआ कि अहमदाबाद एक्सप्रेस आ रही है। मैं भी बहुत खुश हुआ और अपने बचपन के दोस्त से मिलने को आतुर होने लगा। लेकिन ये क्या | मेरी दोस्त आयी और आँखों से मेरी और देखती हुई बिना रुके, बिना गति कम किये सीधे ही चली गयी। न केवल मैं बल्कि स्टेशन पर मौजद सभी लोग भौचक्के थे सिवाय एक दो लोगों के। इन एक दो लोगों के मुह से मैं पहले भी सुन चुका था कि मेरी दोस्त का मेरे ऊपर ठहराव नहीं है लेकिन अन्य मुसाफिरों की बातों में मैंने उनके ऊपर विश्वास नहीं किया था। इन एक दो मुसाफिरों द्वारा मेरी दोस्त के संचालित होने की सुबह तक कोशिश की थी कि मेरी दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर हो जाये लेकिन अन्य स्थानीय नेताओं द्वारा अविश्वास के कारण वे अपने उद्देश्य मे सफल न हो सके। अगर उस समय प्रयास किया गया होता तो प्रथम झंडी के समय ही आगरा किला पर मौजूद मेरे महाप्रबंधक से मांग की गयी होती तो मैं अपने दोस्त से निश्चित ही मिल जाता | लेकिन अब क्या हो सकता था चिड़िया तो खेत चुग चुकीं थीं, बन्दूक से गोली चल चुकी थी। इतना सब कुछ होते हुए भी अंदर ही अंदर एक विश्वास था कि मेरा प्रयोग करने वाले मुसाफिर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे यहाँ करा ही लेंगे। मेरा दोस्त मुझे मिल ही जायेगा। दो शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी
Dec 19 2023 (13:44)
Story of Achhnera
Dec 19 2023 (13:44)
Story of Achhnera
7 compliments
Great Great Great Great Great Great Great
Great Great Great Great Great Great Great
Story of Achhnera
मेरी कहानी, मेरी आपबीती (अछनेरा जं) देश के पूर्वोत्तर भाग को पश्चिम भाग से जोडने के लिए तत्कालीन अंग्रेज गवर्नल जनरल लार्ड डलहौजी ने आगरा से अहमदाबाद एवं सिलीगुड़ी से कानपुर तक रेल लाइन का सर्वे कराया। इसी सर्वे मे मेरे जन्म की नीवं पड़ी। अक्टूबर 1874 को आगरा से पहली रेल सेवा मुझको पास करते हुए बांदीकुई के लिए गयी थी। इस प्रकार एक स्टेशन के रूप मे मेरा जन्म 1874 में हुआ। यह भारत की तत्कालीन दूसरी मीटर गेज़ रेल सेवा थी। 1881 में आगरा एवं दिल्ली...
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मेरी कहानी, मेरी आपबीती (अछनेरा जं) देश के पूर्वोत्तर भाग को पश्चिम भाग से जोडने के लिए तत्कालीन अंग्रेज गवर्नल जनरल लार्ड डलहौजी ने आगरा से अहमदाबाद एवं सिलीगुड़ी से कानपुर तक रेल लाइन का सर्वे कराया। इसी सर्वे मे मेरे जन्म की नीवं पड़ी। अक्टूबर 1874 को आगरा से पहली रेल सेवा मुझको पास करते हुए बांदीकुई के लिए गयी थी। इस प्रकार एक स्टेशन के रूप मे मेरा जन्म 1874 में हुआ। यह भारत की तत्कालीन दूसरी मीटर गेज़ रेल सेवा थी। 1881 में आगरा एवं दिल्ली...
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से अहमदाबाद तक की समस्त रेल लाइन को यातायात हेतु खोल दिया गया था एवं इसी बर्ष पूर्वोत्तर भारत को पश्चिम भारत से जोडने के लिए कासगंज होते हुए कानपुर तक रेल लाइन का निर्माण किया गया| इस प्रकार मैं 1881 में पूर्ण रूप से अस्तित्व में आ गया। उस समय पर मैं पूर्वोत्तर भारत को देश के महत्वपूर्ण पश्चिमी हिस्से से जोडने वाले मार्ग का सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन हुआ करता था। मेरे ही यार्ड मे समस्त गाडिया अपने इंजन का रिवर्सल करती थीं व उपरोक्त ट्रैक पर चलने वालीं मालगाडियां आज भी इंजन का रिवर्सल करती हैं। बहुत अच्छा लगता था उस समय | 1900 के आसपास सिलीगुड़ी तक ट्रैक का निर्माण हो चुका था एवं इसी समय आगरा से अहमदाबाद, आगरा से सिलीगुड़ी
वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों
इसी समय आगरा से अहमदाबाद, आगरा से सिलीगुड़ी वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों ही रेल गाडियां किसी समय में आगरा के रेल परिवहन का
महत्वपूर्ण अंग हुआ करती थीं एवं मेरे यार्ड में दोनों ही रेल गाड़ियों का ठहराव था। पूर्वोत्तर रेलवे के कासगंज, बरेली खंड से आने वाले बहुत से यात्री अहमदाबाद को जाने
वाली/से आने वाली सेवन अप व एट डाउन (तत्कालीन डाक गाड़ी) को पकड़ने के लिए मेरा ही प्रयोग करते थे एवं उपरोक्त गाड़ी से प्राप्त यात्री यातायात राजस्व के साथ ही पार्सल एवं मॉल यातायात राजस्व से मेरी तत्कालीन जयपुर मंडल मे एक अलग ही पहचान थी। मेरी महत्वपूर्णता को बताने वाला बोर्ड आज भी मेरे सीने के प्लेटफोर्म एक के आगरा छोर पर अवशेष के रूप में खड़ा है जिस पर कि किसी समय लिखा रहता था (यहाँ से पूर्वोत्तर रेलवे के ---,- • स्थानों पर जाने के लिए गाडियां बदलिए). जैसा कि अक्सर सभी के साथ होता है सभी का बुरा दिन भी आता है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इस जमाने में दुर्दिन न देखें हों। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। 1992 में भारत सरकार द्वारा आमान परिवर्तन परियोजनाओं की शुरुआत की गयी एवं उपरोक्त परियोजनाओं के तहत पूरे भारत के रेलवे गेजों को अगले कुछ बर्षों (या कहें दशकों) में एक सा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। योजना के प्रथम चरण में 1992 में दिल्ली-अहमदाबाद-जोधपुर वाया जयपुर को ब्राड गेज बनाने का निश्चय किया गया। 1994 में मेरी मेन लाइन आगरा-बांदीकुई को भी ब्राड गेज में बदलने का निश्चय किया गया। में बहुत ही खुश था। में अपने आप को एक बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखने लगा। मेरे सीने से होते हुए गाडियां पकडने वाले यात्री भी बहुत खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने
खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने के साथ चलने की खुशी भी थी। इसी गम खुशी के बीच 21 मई 1994 को राजस्थान की और जाने वाली समस्त एक्सप्रेस गाड़ियों को मेरे यार्ड मे से गुजरना ही बंद कर दिया गया। यही नहीं मेरी पहचान 22 लाईनों वाले मेरे यार्ड को भी उखाड़ दिया गया। मेरे लोकोशेड को भी बंद कर दिया गया। रह गया केवल अवशेष । इस आशा में कि कल को जब ब्राड गेज आएगी तो मुझे मेरी पुरानी पहचान, पुराना रूतबा बापस मिल जायेगा। इस बीच मेरे नीति नियामक भी बदल गए। मेरा जोनल कार्यालय मुंबई से चलकर हो गया इलाहबाद | मेरा मंडल कार्यालय भी जयपुर से बदलकर हो गया आगरा | नीति नियामकों से दूरी कम हुई तो सोचा था कि चलो अच्छा है अपनी बात पहुँचाने हेतु ज्यादा दूरी तय नहीं करनी होगी। सपने देखना अच्छी बात है और उससे भी अच्छी बात है उन सपनों को पूरा करना। देर से ही सही लेकिन मेरा सपना पूरा हुआ और 2 जुलाई 2005 को मेरे सीने से एक बार फिर रेलगाडियां दौडने लगीं। पूरी एक दो नहीं बल्कि 8 यात्री रेलगाडियां मेरे ऊपर होते हुए अपने गंतव्य स्थानों की और आने जाने लगीं। इन गाड़ियों में, मैं कुछ ढूंड रहा था। इस समय मेरी मथुरा ब्रांच लाइन मीटर गेज ही थी किन्तु आगरा जयपुर मेन लाइन पर मैं अपनी पुरानी साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस को ढूंड रहा था। दिन पर दिन, सप्ताह, महीनों और फिर सालों बीतते चले गए परन्तु इस बीच मुझे मेरी जन्म की साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस कहीं नहीं दिखी। मेरी खुशी काफूर हो चुकी थी। मैं बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखकर काफी कुछ खो चुका था। मेरे लोकोशेड को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन
कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया
बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया किन्तु जन्म की दोस्त आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस की जुदाई मुझसे व पूरे ट्रैक से बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने अपने ऊपर होकर जाने वाले कुछ प्रबुद्धजनों से अपनी
पीड़ा व्यक्त की व उनसे मामले को ऊपर तक ले जाने का अनुरोध किया। मेरी मांग व याचना रंग लायी जब फरवरी 2010 को संसद मे रेल बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन रेल मंत्री महोदया ने मेरे मार्ग पर मेरी पुरानी साथी को फिर से शुरू करने की घोसणा की। इसी बीच मथुरा की और जाने वाली मेरी ब्रांच लाइन को ब्राड गेज मे बदल दिया गया और मैं सिलीगुड़ी एक्सप्रेस से पुनः मिलने के सपने देखने लगा। लगता था कि पुराना रूतबा तो शायद ही बापस आये परन्तु देर से ही सही पुराने बचपन के दोस्त तो मिल ही जायेंगे। ऐसा सोचते सोचते आया 01 जुलाई 2010| भारतीय रेलवे द्वारा नया टाइम टेबल जारी किया गया और मेरी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस को भी टाइम टेबल मे स्थान दिया गया। मैं पड़ना लिखना तो नहीं
जानता हूँ लेकिन अपने ऊपर होकर जाने वाले मुसाफिरों की बातों से मुझे पता चला कि मेरे दोस्त को तो मेरे यहाँ ठहराव ही नही दिया गया है। वहीं कुछ मुसाफिरों की बातों से लगता था की मेरे दोस्त का मेरे यहाँ ठहराव है। कुल मिलाकर मैं बहुत ही अनिश्चय की स्थिति में था और
मैंने उस दिन का इंतज़ार करना ही उचित समझा जिस दिन कि मेरी दोस्त ट्रैक पर दौड़े। इस प्रकार इंतजार करते करते आया फरवरी 2011 का दूसरा सप्ताह और दिन था संभवतः 11 फरवरी। यह दिन मेरे लिए दोहरी खुशी लेकर आने वाला था क्यों कि मैं अपनी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस से लगभग 17 बर्षों के लंबे इंतजार के बाद मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी
वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों
इसी समय आगरा से अहमदाबाद, आगरा से सिलीगुड़ी वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों ही रेल गाडियां किसी समय में आगरा के रेल परिवहन का
महत्वपूर्ण अंग हुआ करती थीं एवं मेरे यार्ड में दोनों ही रेल गाड़ियों का ठहराव था। पूर्वोत्तर रेलवे के कासगंज, बरेली खंड से आने वाले बहुत से यात्री अहमदाबाद को जाने
वाली/से आने वाली सेवन अप व एट डाउन (तत्कालीन डाक गाड़ी) को पकड़ने के लिए मेरा ही प्रयोग करते थे एवं उपरोक्त गाड़ी से प्राप्त यात्री यातायात राजस्व के साथ ही पार्सल एवं मॉल यातायात राजस्व से मेरी तत्कालीन जयपुर मंडल मे एक अलग ही पहचान थी। मेरी महत्वपूर्णता को बताने वाला बोर्ड आज भी मेरे सीने के प्लेटफोर्म एक के आगरा छोर पर अवशेष के रूप में खड़ा है जिस पर कि किसी समय लिखा रहता था (यहाँ से पूर्वोत्तर रेलवे के ---,- • स्थानों पर जाने के लिए गाडियां बदलिए). जैसा कि अक्सर सभी के साथ होता है सभी का बुरा दिन भी आता है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इस जमाने में दुर्दिन न देखें हों। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। 1992 में भारत सरकार द्वारा आमान परिवर्तन परियोजनाओं की शुरुआत की गयी एवं उपरोक्त परियोजनाओं के तहत पूरे भारत के रेलवे गेजों को अगले कुछ बर्षों (या कहें दशकों) में एक सा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। योजना के प्रथम चरण में 1992 में दिल्ली-अहमदाबाद-जोधपुर वाया जयपुर को ब्राड गेज बनाने का निश्चय किया गया। 1994 में मेरी मेन लाइन आगरा-बांदीकुई को भी ब्राड गेज में बदलने का निश्चय किया गया। में बहुत ही खुश था। में अपने आप को एक बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखने लगा। मेरे सीने से होते हुए गाडियां पकडने वाले यात्री भी बहुत खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने
खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने के साथ चलने की खुशी भी थी। इसी गम खुशी के बीच 21 मई 1994 को राजस्थान की और जाने वाली समस्त एक्सप्रेस गाड़ियों को मेरे यार्ड मे से गुजरना ही बंद कर दिया गया। यही नहीं मेरी पहचान 22 लाईनों वाले मेरे यार्ड को भी उखाड़ दिया गया। मेरे लोकोशेड को भी बंद कर दिया गया। रह गया केवल अवशेष । इस आशा में कि कल को जब ब्राड गेज आएगी तो मुझे मेरी पुरानी पहचान, पुराना रूतबा बापस मिल जायेगा। इस बीच मेरे नीति नियामक भी बदल गए। मेरा जोनल कार्यालय मुंबई से चलकर हो गया इलाहबाद | मेरा मंडल कार्यालय भी जयपुर से बदलकर हो गया आगरा | नीति नियामकों से दूरी कम हुई तो सोचा था कि चलो अच्छा है अपनी बात पहुँचाने हेतु ज्यादा दूरी तय नहीं करनी होगी। सपने देखना अच्छी बात है और उससे भी अच्छी बात है उन सपनों को पूरा करना। देर से ही सही लेकिन मेरा सपना पूरा हुआ और 2 जुलाई 2005 को मेरे सीने से एक बार फिर रेलगाडियां दौडने लगीं। पूरी एक दो नहीं बल्कि 8 यात्री रेलगाडियां मेरे ऊपर होते हुए अपने गंतव्य स्थानों की और आने जाने लगीं। इन गाड़ियों में, मैं कुछ ढूंड रहा था। इस समय मेरी मथुरा ब्रांच लाइन मीटर गेज ही थी किन्तु आगरा जयपुर मेन लाइन पर मैं अपनी पुरानी साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस को ढूंड रहा था। दिन पर दिन, सप्ताह, महीनों और फिर सालों बीतते चले गए परन्तु इस बीच मुझे मेरी जन्म की साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस कहीं नहीं दिखी। मेरी खुशी काफूर हो चुकी थी। मैं बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखकर काफी कुछ खो चुका था। मेरे लोकोशेड को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन
कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया
बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया किन्तु जन्म की दोस्त आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस की जुदाई मुझसे व पूरे ट्रैक से बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने अपने ऊपर होकर जाने वाले कुछ प्रबुद्धजनों से अपनी
पीड़ा व्यक्त की व उनसे मामले को ऊपर तक ले जाने का अनुरोध किया। मेरी मांग व याचना रंग लायी जब फरवरी 2010 को संसद मे रेल बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन रेल मंत्री महोदया ने मेरे मार्ग पर मेरी पुरानी साथी को फिर से शुरू करने की घोसणा की। इसी बीच मथुरा की और जाने वाली मेरी ब्रांच लाइन को ब्राड गेज मे बदल दिया गया और मैं सिलीगुड़ी एक्सप्रेस से पुनः मिलने के सपने देखने लगा। लगता था कि पुराना रूतबा तो शायद ही बापस आये परन्तु देर से ही सही पुराने बचपन के दोस्त तो मिल ही जायेंगे। ऐसा सोचते सोचते आया 01 जुलाई 2010| भारतीय रेलवे द्वारा नया टाइम टेबल जारी किया गया और मेरी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस को भी टाइम टेबल मे स्थान दिया गया। मैं पड़ना लिखना तो नहीं
जानता हूँ लेकिन अपने ऊपर होकर जाने वाले मुसाफिरों की बातों से मुझे पता चला कि मेरे दोस्त को तो मेरे यहाँ ठहराव ही नही दिया गया है। वहीं कुछ मुसाफिरों की बातों से लगता था की मेरे दोस्त का मेरे यहाँ ठहराव है। कुल मिलाकर मैं बहुत ही अनिश्चय की स्थिति में था और
मैंने उस दिन का इंतज़ार करना ही उचित समझा जिस दिन कि मेरी दोस्त ट्रैक पर दौड़े। इस प्रकार इंतजार करते करते आया फरवरी 2011 का दूसरा सप्ताह और दिन था संभवतः 11 फरवरी। यह दिन मेरे लिए दोहरी खुशी लेकर आने वाला था क्यों कि मैं अपनी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस से लगभग 17 बर्षों के लंबे इंतजार के बाद मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी
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PrakharYadav^~
PrakharYadav^~ 12955 blog postsRe# 5915989-1 Past Edits
Dec 19 2023 (14:04)
मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी बहुत खुश थे और वो मेरी दोस्त को संचालित करने वाले चालक दल के सदस्यों को सम्मानित करने वाले थे। मैं खुश होने के साथ साथ आशंकित भी था कि क्या मेरे पुराने दोस्त को नए नीति नियामकों द्वारा मेरे ऊपर ठहराव दिया गया है या नहीं। इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुईं व उक्त दिन शाम के लगभग 4 बजे मुसाफिरों का शोर शुरू हुआ कि अहमदाबाद एक्सप्रेस आ रही है। मैं भी बहुत खुश हुआ और अपने बचपन के दोस्त से मिलने को आतुर होने लगा। लेकिन ये क्या | मेरी दोस्त आयी और आँखों से मेरी और देखती हुई बिना रुके, बिना गति कम किये सीधे ही चली गयी। न केवल मैं बल्कि स्टेशन पर मौजद सभी लोग भौचक्के थे सिवाय एक दो लोगों के। इन एक दो लोगों के मुह से मैं पहले भी सुन चुका था कि मेरी दोस्त का मेरे ऊपर ठहराव नहीं है लेकिन अन्य मुसाफिरों की बातों में मैंने उनके ऊपर विश्वास नहीं किया था। इन एक दो मुसाफिरों द्वारा मेरी दोस्त के संचालित होने की सुबह तक कोशिश की थी कि मेरी दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर हो जाये लेकिन अन्य स्थानीय नेताओं द्वारा अविश्वास के कारण वे अपने उद्देश्य मे सफल न हो सके। अगर उस समय प्रयास किया गया होता तो प्रथम झंडी के समय ही आगरा किला पर मौजूद मेरे महाप्रबंधक से मांग की गयी होती तो मैं अपने दोस्त से निश्चित ही मिल जाता | लेकिन अब क्या हो सकता था चिड़िया तो खेत चुग चुकीं थीं, बन्दूक से गोली चल चुकी थी। इतना सब कुछ होते हुए भी अंदर ही अंदर एक विश्वास था कि मेरा प्रयोग करने वाले मुसाफिर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे यहाँ करा ही लेंगे। मेरा दोस्त मुझे मिल ही जायेगा। दो शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी
रेल्वे स्टेशन
Dec 19 2023 (13:46)
शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी गिरा दी गयी की 100 बर्ष पुराने मेरे दोस्त के ठहराव को ही खत्म कर दिया गया। रोजाना मैं ध्यानपूर्वक अपना प्रयोग करने वाले मुसाफिरों की बातों को सुनता हूँ। कई सारी राजनीतिक योजनाएं मेरी सरजमीं पर जन्म लेती हैं लेकिन कभी मैंने किसी भी मुसाफिर को मेरी दोस्त के ठहराव के लिए कोशिश करते हुए नहीं देखा। पिछले फरवरी से मेरी दोस्त के संचालन के बाद न तो उसके मेरे यहाँ ठहराव के लिए कोई आवाज ही उठाई गयी न ही किसी समाचार पत्र मे ऐसी कोई मांग मैंने देखी। मुसाफिरों के माध्यम से ही मुझे पता चला कि स्थानीय जनप्रतिनिधि टूंडला आदि स्टेशनों पर गाड़ियों के ठहराव हेतु रेल मंत्रालय को पत्र लिखते हैं किन्तु इंग्लिश हुकूमत के समय के मेरे दोस्त के ठहराव हेतु कभी कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि रेल मंत्रालय को कोई पत्र नहीं लिखता है। ऐसा नहीं है कि मेरे दोस्त को मुझसे मिलाना कोई बहुत मुश्किल काम है। मात्र स्थानीय सांसद को ठहराव हेतु एक पत्र रेलमंत्रालय को लिखना है एवं मेरे दोस्त के पुराने रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने की जरूरत है। मेरा अपना अनुमान है कि पूर्वोत्तर रेलवे के ट्रैक से बहुत से यात्री मेरे दोस्त मे सफर करने के लिए मेरे यहाँ आते थे एवं इन यात्रियों से मेरे शहर की बहुत बड़ी जनसँख्या को रोजगार मिला करता था। आज भी अगर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर कर दिया जाये तो मेरे से प्राप्त राजस्व काफी बढ़ सकता है। मेरा पत्र कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है किन्तु समझ मे नहीं आता की इसे छोटा कहाँ पर करूं। हरेक महत्वपूर्ण बात ही तो लिखी है। किन्तु उम्मीद करता हूँ कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे। अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद
व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद
मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी बहुत खुश थे और वो मेरी दोस्त को संचालित करने वाले चालक दल के सदस्यों को सम्मानित करने वाले थे। मैं खुश होने के साथ साथ आशंकित भी था कि क्या मेरे पुराने दोस्त को नए नीति नियामकों द्वारा मेरे ऊपर ठहराव दिया गया है या नहीं। इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुईं व उक्त दिन शाम के लगभग 4 बजे मुसाफिरों का शोर शुरू हुआ कि अहमदाबाद एक्सप्रेस आ रही है। मैं भी बहुत खुश हुआ और अपने बचपन के दोस्त से मिलने को आतुर होने लगा। लेकिन ये क्या | मेरी दोस्त आयी और आँखों से मेरी और देखती हुई बिना रुके, बिना गति कम किये सीधे ही चली गयी। न केवल मैं बल्कि स्टेशन पर मौजद सभी लोग भौचक्के थे सिवाय एक दो लोगों के। इन एक दो लोगों के मुह से मैं पहले भी सुन चुका था कि मेरी दोस्त का मेरे ऊपर ठहराव नहीं है लेकिन अन्य मुसाफिरों की बातों में मैंने उनके ऊपर विश्वास नहीं किया था। इन एक दो मुसाफिरों द्वारा मेरी दोस्त के संचालित होने की सुबह तक कोशिश की थी कि मेरी दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर हो जाये लेकिन अन्य स्थानीय नेताओं द्वारा अविश्वास के कारण वे अपने उद्देश्य मे सफल न हो सके। अगर उस समय प्रयास किया गया होता तो प्रथम झंडी के समय ही आगरा किला पर मौजूद मेरे महाप्रबंधक से मांग की गयी होती तो मैं अपने दोस्त से निश्चित ही मिल जाता | लेकिन अब क्या हो सकता था चिड़िया तो खेत चुग चुकीं थीं, बन्दूक से गोली चल चुकी थी। इतना सब कुछ होते हुए भी अंदर ही अंदर एक विश्वास था कि मेरा प्रयोग करने वाले मुसाफिर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे यहाँ करा ही लेंगे। मेरा दोस्त मुझे मिल ही जायेगा। दो शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी
रेल्वे स्टेशन
Dec 19 2023 (13:46)
शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी गिरा दी गयी की 100 बर्ष पुराने मेरे दोस्त के ठहराव को ही खत्म कर दिया गया। रोजाना मैं ध्यानपूर्वक अपना प्रयोग करने वाले मुसाफिरों की बातों को सुनता हूँ। कई सारी राजनीतिक योजनाएं मेरी सरजमीं पर जन्म लेती हैं लेकिन कभी मैंने किसी भी मुसाफिर को मेरी दोस्त के ठहराव के लिए कोशिश करते हुए नहीं देखा। पिछले फरवरी से मेरी दोस्त के संचालन के बाद न तो उसके मेरे यहाँ ठहराव के लिए कोई आवाज ही उठाई गयी न ही किसी समाचार पत्र मे ऐसी कोई मांग मैंने देखी। मुसाफिरों के माध्यम से ही मुझे पता चला कि स्थानीय जनप्रतिनिधि टूंडला आदि स्टेशनों पर गाड़ियों के ठहराव हेतु रेल मंत्रालय को पत्र लिखते हैं किन्तु इंग्लिश हुकूमत के समय के मेरे दोस्त के ठहराव हेतु कभी कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि रेल मंत्रालय को कोई पत्र नहीं लिखता है। ऐसा नहीं है कि मेरे दोस्त को मुझसे मिलाना कोई बहुत मुश्किल काम है। मात्र स्थानीय सांसद को ठहराव हेतु एक पत्र रेलमंत्रालय को लिखना है एवं मेरे दोस्त के पुराने रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने की जरूरत है। मेरा अपना अनुमान है कि पूर्वोत्तर रेलवे के ट्रैक से बहुत से यात्री मेरे दोस्त मे सफर करने के लिए मेरे यहाँ आते थे एवं इन यात्रियों से मेरे शहर की बहुत बड़ी जनसँख्या को रोजगार मिला करता था। आज भी अगर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर कर दिया जाये तो मेरे से प्राप्त राजस्व काफी बढ़ सकता है। मेरा पत्र कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है किन्तु समझ मे नहीं आता की इसे छोटा कहाँ पर करूं। हरेक महत्वपूर्ण बात ही तो लिखी है। किन्तु उम्मीद करता हूँ कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे। अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद
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मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी बहुत खुश थे और वो मेरी दोस्त को संचालित करने वाले चालक दल के सदस्यों को सम्मानित करने वाले थे। मैं खुश होने के साथ साथ आशंकित भी था कि क्या मेरे पुराने दोस्त को नए नीति नियामकों द्वारा मेरे ऊपर ठहराव दिया गया है या नहीं। इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म हुईं व उक्त दिन शाम के लगभग 4 बजे मुसाफिरों का शोर शुरू हुआ कि अहमदाबाद एक्सप्रेस आ रही है। मैं भी बहुत खुश हुआ और अपने बचपन के दोस्त से मिलने को आतुर होने लगा। लेकिन ये क्या | मेरी दोस्त आयी और आँखों से मेरी और देखती हुई बिना रुके, बिना गति कम किये सीधे ही चली गयी। न केवल मैं बल्कि स्टेशन पर मौजद सभी लोग भौचक्के थे सिवाय एक दो लोगों के। इन एक दो...
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लोगों के मुह से मैं पहले भी सुन चुका था कि मेरी दोस्त का मेरे ऊपर ठहराव नहीं है लेकिन अन्य मुसाफिरों की बातों में मैंने उनके ऊपर विश्वास नहीं किया था। इन एक दो मुसाफिरों द्वारा मेरी दोस्त के संचालित होने की सुबह तक कोशिश की थी कि मेरी दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर हो जाये लेकिन अन्य स्थानीय नेताओं द्वारा अविश्वास के कारण वे अपने उद्देश्य मे सफल न हो सके। अगर उस समय प्रयास किया गया होता तो प्रथम झंडी के समय ही आगरा किला पर मौजूद मेरे महाप्रबंधक से मांग की गयी होती तो मैं अपने दोस्त से निश्चित ही मिल जाता | लेकिन अब क्या हो सकता था चिड़िया तो खेत चुग चुकीं थीं, बन्दूक से गोली चल चुकी थी। इतना सब कुछ होते हुए भी अंदर ही अंदर एक विश्वास था कि मेरा प्रयोग करने वाले मुसाफिर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे यहाँ करा ही लेंगे। मेरा दोस्त मुझे मिल ही जायेगा। दो शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी
शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी गिरा दी गयी की 100 बर्ष पुराने मेरे दोस्त के ठहराव को ही खत्म कर दिया गया। रोजाना मैं ध्यानपूर्वक अपना प्रयोग करने वाले मुसाफिरों की बातों को सुनता हूँ। कई सारी राजनीतिक योजनाएं मेरी सरजमीं पर जन्म लेती हैं लेकिन कभी मैंने किसी भी मुसाफिर को मेरी दोस्त के ठहराव के लिए कोशिश करते हुए नहीं देखा। पिछले फरवरी से मेरी दोस्त के संचालन के बाद न तो उसके मेरे यहाँ ठहराव के लिए कोई आवाज ही उठाई गयी न ही किसी समाचार पत्र मे ऐसी कोई मांग मैंने देखी। मुसाफिरों के माध्यम से ही मुझे पता चला कि स्थानीय जनप्रतिनिधि टूंडला आदि स्टेशनों पर गाड़ियों के ठहराव हेतु रेल मंत्रालय को पत्र लिखते हैं किन्तु इंग्लिश हुकूमत के समय के मेरे दोस्त के ठहराव हेतु कभी कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि रेल मंत्रालय को कोई पत्र नहीं लिखता है। ऐसा नहीं है कि मेरे दोस्त को मुझसे मिलाना कोई बहुत मुश्किल काम है। मात्र स्थानीय सांसद को ठहराव हेतु एक पत्र रेलमंत्रालय को लिखना है एवं मेरे दोस्त के पुराने रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने की जरूरत है। मेरा अपना अनुमान है कि पूर्वोत्तर रेलवे के ट्रैक से बहुत से यात्री मेरे दोस्त मे सफर करने के लिए मेरे यहाँ आते थे एवं इन यात्रियों से मेरे शहर की बहुत बड़ी जनसँख्या को रोजगार मिला करता था। आज भी अगर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर कर दिया जाये तो मेरे से प्राप्त राजस्व काफी बढ़ सकता है। मेरा पत्र कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है किन्तु समझ मे नहीं आता की इसे छोटा कहाँ पर करूं। हरेक महत्वपूर्ण बात ही तो लिखी है। किन्तु उम्मीद करता हूँ कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे। अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद
कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे| अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस) के ठहराव हेतु प्रयत्न करे तो उसे निश्चित ही सफलता मिलेगी| कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है यह। स्थानीय सांसद को उपरोक्त मामला उठाते हुए रेलमंत्रालय से मांग करनी है एवं अगर निकटवर्ती लाभार्थी क्षेत्रों के सांसद (मथुरा, भरतपुर, फिरोजाबाद) व विधायक भी उपरोक्त मांग को रेलमंत्रालय से करें तो मेरा दावा है कि रेलमंत्रालय इस मांग को अनदेखा नहीं कर सकेगा। इस ग्रुप से जुड़े सभी सदस्यों से उम्मीद करता हूँ कि मेरी मांग को उचित स्तर पर पहुँचाया जायेगा एवं मेरे दोस्त के ठहराव हेतु यथासंभव कोशिश की जायेगी। आखिर वो दिन आ ही गया जब अछनेरा दैनिक यात्री वेलफेयर एसोसिएशन के अथक प्रयासों से 05.08.2017 को मेरी दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस) का ठहराव मेरे ऊपर किया गया और मै अपने सालों पुराने दोस्त से फ़िर मिल सका ! उम्मीद करता हूँ कि मैं अपने नये-पुराने दोस्तों यानी मेरे ऊपर से गुजरने वाली ट्रेनों को फिर से मिल पाऊँगा और अपने खोये हुए अस्तित्व को फिर से पाऊँगा अपने इतिहास के पन्नो की तरह चमकता नजर आऊंगा! मेरे जन्म की गाथा मेरा इतिहास मेरा पत्र पड़ने के लिए मेरा कोटि कोटि
धन्यवाद।
आपका अपना अछनेरा जं........... रेल्वे स्टेशन
शताब्दियाँ तो अपने दोस्त के साथ देख ही चुका था किन्तु पता नहीं कैसे तीसरी शताब्दी में मेरी हैसियत इतनी गिरा दी गयी की 100 बर्ष पुराने मेरे दोस्त के ठहराव को ही खत्म कर दिया गया। रोजाना मैं ध्यानपूर्वक अपना प्रयोग करने वाले मुसाफिरों की बातों को सुनता हूँ। कई सारी राजनीतिक योजनाएं मेरी सरजमीं पर जन्म लेती हैं लेकिन कभी मैंने किसी भी मुसाफिर को मेरी दोस्त के ठहराव के लिए कोशिश करते हुए नहीं देखा। पिछले फरवरी से मेरी दोस्त के संचालन के बाद न तो उसके मेरे यहाँ ठहराव के लिए कोई आवाज ही उठाई गयी न ही किसी समाचार पत्र मे ऐसी कोई मांग मैंने देखी। मुसाफिरों के माध्यम से ही मुझे पता चला कि स्थानीय जनप्रतिनिधि टूंडला आदि स्टेशनों पर गाड़ियों के ठहराव हेतु रेल मंत्रालय को पत्र लिखते हैं किन्तु इंग्लिश हुकूमत के समय के मेरे दोस्त के ठहराव हेतु कभी कोई स्थानीय जनप्रतिनिधि रेल मंत्रालय को कोई पत्र नहीं लिखता है। ऐसा नहीं है कि मेरे दोस्त को मुझसे मिलाना कोई बहुत मुश्किल काम है। मात्र स्थानीय सांसद को ठहराव हेतु एक पत्र रेलमंत्रालय को लिखना है एवं मेरे दोस्त के पुराने रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने की जरूरत है। मेरा अपना अनुमान है कि पूर्वोत्तर रेलवे के ट्रैक से बहुत से यात्री मेरे दोस्त मे सफर करने के लिए मेरे यहाँ आते थे एवं इन यात्रियों से मेरे शहर की बहुत बड़ी जनसँख्या को रोजगार मिला करता था। आज भी अगर मेरे दोस्त का ठहराव मेरे ऊपर कर दिया जाये तो मेरे से प्राप्त राजस्व काफी बढ़ सकता है। मेरा पत्र कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है किन्तु समझ मे नहीं आता की इसे छोटा कहाँ पर करूं। हरेक महत्वपूर्ण बात ही तो लिखी है। किन्तु उम्मीद करता हूँ कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे। अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद
कि मेरे पत्र लिखने का अभिप्राय आप समझ गए होंगे| अगर मेरी व्यथा को समझकर इस ग्रुप से जुड़ा कोई भी व्यक्ति मेरे दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस) के ठहराव हेतु प्रयत्न करे तो उसे निश्चित ही सफलता मिलेगी| कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है यह। स्थानीय सांसद को उपरोक्त मामला उठाते हुए रेलमंत्रालय से मांग करनी है एवं अगर निकटवर्ती लाभार्थी क्षेत्रों के सांसद (मथुरा, भरतपुर, फिरोजाबाद) व विधायक भी उपरोक्त मांग को रेलमंत्रालय से करें तो मेरा दावा है कि रेलमंत्रालय इस मांग को अनदेखा नहीं कर सकेगा। इस ग्रुप से जुड़े सभी सदस्यों से उम्मीद करता हूँ कि मेरी मांग को उचित स्तर पर पहुँचाया जायेगा एवं मेरे दोस्त के ठहराव हेतु यथासंभव कोशिश की जायेगी। आखिर वो दिन आ ही गया जब अछनेरा दैनिक यात्री वेलफेयर एसोसिएशन के अथक प्रयासों से 05.08.2017 को मेरी दोस्त (12547/12548 आगरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस) का ठहराव मेरे ऊपर किया गया और मै अपने सालों पुराने दोस्त से फ़िर मिल सका ! उम्मीद करता हूँ कि मैं अपने नये-पुराने दोस्तों यानी मेरे ऊपर से गुजरने वाली ट्रेनों को फिर से मिल पाऊँगा और अपने खोये हुए अस्तित्व को फिर से पाऊँगा अपने इतिहास के पन्नो की तरह चमकता नजर आऊंगा! मेरे जन्म की गाथा मेरा इतिहास मेरा पत्र पड़ने के लिए मेरा कोटि कोटि
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आपका अपना अछनेरा जं........... रेल्वे स्टेशन
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But MG trains between Agra and Jaipur used to run till 2003.
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KKRAlwaysDestroyTeamIndia~
KKRAlwaysDestroyTeamIndia~ 1623 blog posts1 compliments
Useful
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Initially Lord Dalhousie wanted BG line, but the Rail company laid MG line.
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